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Jaane Kahaa ??? The Revolution भाग 19

अपडेट 19

मन्दिर की घंटीयो की आवाज सुनकर क्रिष्ना की आंख खुल गइ। आसमान पे सुर्य आ चुका था क्युकी किरणो की रोशनी बारी के पर्दो से अंदर आ रही थी। बारी के ठीक बाजु पर लगा बडे पेड पर तोते, गौरैया की मीठी मीठी चिहुक सुनकर क्रिष्ना बेड पर उठकर बैठी। बाजु मे घोडे बेचकर विक्रम बडी जोरो से खर्राटे ले रहा था। एक परम शांती विक्रम के मुख पर छाइ हुइ थी। कुछ देर उस के बाल सहलाती रही क्रिष्ना और फिर से किक्रम की बाजु पर सो गइ और उस के गालो को चुम लिया। अभी भी मन्दिर की घंटियो की आवाज आ रही थ। फिर भी थकान से कुछ देर तक क्रिष्ना की आख लग गइ। घंटियो की आवाज धीरे धीरे दुर से नजदिक हो रही थी और अचानक उस की आख दुबारा खुली और देखा सुबह के 7.30 बज रहे थी और वो सहसा खडी हुइ। फ्रेश होकर जैसे रुम से बाहर आइ और रुम बाहर से लोक कर दिया ता की विक्रम की नींद मे कोइ विघ्न न आये।

क्रिष्ना ने ब्लेक बोर्डरवाली ओफ व्हाइट कलर मे बडे बडे फुलो के बुट्टे थे ऐसे लाल बेंगोली साडी पहनकर जल्दी से भागी और मन्दिर घर से घंटिया की आवाज आ रही थी वहा जाकर देखा तो किशोरीलाल और राजेश्वरीदेवी दोनो पुजा मे बैठे हुये थे और वो उस के पीछे बैठ गइ। इश्वर का बहुत बहुत धन्यवाद क्रिष्ना ने किया और देखा की पुजा समाप्त हो रही है। क्रिष्ना ने खडी होकर किशोरीलाल राजेश्वरीदेवी के पाव छुए। 

“अरे क्रिष्ना ये क्या कर रही हो?” कहकर राजेश्वरीदेवी ने उसको उठाया और क्रिष्ना बोली,”भाभी आप ही मेरे भगवान बनकर यहा आये हो। आज जो मे खुशी पा रही हु वो आप लोगो की ही देन है।”

राजेश्वरीदेवी,”नही क्रिष्ना सब का अच्छा समय होता है, तूने क्या कम सहा है, ये कुदरत का ही फल है।”

क्रिष्ना मुस्कुराइ और फिर बोली,”भाभी मेरे बच्चे ने परेशान तो नही किया ना?”

“अरे नही रे वो तो कल रात से सोया हुवा है तो दोनो बच्चे कहा उठे ही है अब तक” राजेश्वरीदेवी ने जवाब दिया और आगे बोली,”क्रिष्ना तेरे बच्चे का नाम क्या है? हमने तो आजतक कुछ पुछा ही नही।”

“मैने रखा ही नही अब तक, सोचती थी अगर इसके पापा मानेंगे तो जो वो चाहे वो रखेंगे वरना मै तो उसे मुन्ना कहकर ही बुलाती हु।” क्रिष्ना ने कहा।

“अच्छा, अच्छा,  वीकी उठ गया है क्या?” किशोरीलाल ने पुछा।

क्रिष्ना ने ना मे जवाब दिया और नज़रे नीची कर ली। राजेश्वरीदेवी समज गयी और बोली,” अरे आप भी ना कौन सा सवाल किस को पुछते हो? विक्रमभैया सुबह थोडे ही जल्दी से उठते है। लेकिन अब मूज़े विश्वास है क्रिष्ना के आ जाने से जल्दी उठना शुरू हो जायेगा।”

“अरे उसे जल्दी उठाओ, फिर हमे जाना है ना।” किशोरीलाल ने कहा।

“आप को कहा जाना है?” क्रिष्ना ने पुछा।

“जुनागढ” राजेश्वरीदेवी ने जवाब दिया।

“आप आज ही चले जाओगे, कुछ दिन मेरे साथ भी रहियेना। मै बिल्कुल यहा अकेली हो जाउंगी भाभी।” क्रिष्ना की आँखे छोटी हो गयी।

“अरे अब तू कहा अकेली है ?” राजेश्वरीदेवी ने उसका चेहरा पकड़कर कहा और आगे बोली,”देखो क्रिष्ना, बहुत दिन हो गये हमे भी तो काम पूरा करना है ना और  (किशोरीलाल के सामने इशारा कर के बोली) फिर विक्रमभैया के साथ वो अग्रीमेंन्ट चेंज करना है और इसके पहले एक बार कन्याकुमारी जाना होगा। वो जल्दी ही ख़तम हो जाये तो आपलोग जल्दी आज़ाद हो जाओगे ना।”

क्रिष्ना को कुछ समज नही आ रहा था, ये देखकर राजेश्वरीदेवी बोली,”अरे हा ये सब बाते तुजे विक्रमभैया ही बतायेंगे । हा, एक बात ज़रूर है, जब हम यहा दुबारा आये तो हमे हमारी बहु का समाचार जरुर मिलना चाहिये।”

क्रिष्ना ने शर्म से नज़रे जुका ली और मुस्कुरा दी। फिर धीरे से बोली,”भाभी भगवान करे जल्दी ही समाचार मिले, मै कोशिश तो कर रही हु।” लेकिन इतना कहने पर उसे बाद मे महसूस हुवा की वो क्या बोल चुकी है और राजेश्वरीदेवी ने उसका चेहरा उठाकर कान मे बोला,”अच्छा ? तो कोशिश शुरू भी हो गयी, वेरी गुड।” और हस दी। तब तक मौका देखकर किशोरीलाल वहा से नीचे चल दिया था।

“भाभी आप ना, क्यू चिडाती है मूज़े ?” कहकर क्रिष्ना ने अपना मूह राजेश्वरीदेवी की छाती मे छुपा लिया।

“क्रिष्ना, ऐसी ही खुशिया बनाये रखना मेरी बहन, बस हमे इसके सिवा और कुछ नही चाहिये।” राजेश्वरीदेवी ने कहा।

“भाभी आप के आशिर्वाद से सबकुछ ठीक हो जायेगा।” क्रिष्ना ने द्रढ विश्वास के साथ बोला और बोली,”मै इसे जगाती हु और चाय बनाती हु।”

“अरे गरमागरम चाय हाजिर है” केहता हुवा बंसी चाय ले के प्रकट हुवा।

“भैया, आज से आप चाय नही बनायेंगे, ये अच्छा नही लगता की मेरे होते हुये आप नौकरी करो यहा।” क्रिष्ना ने धीरे से कहा और उस के भी पैर छु लिये।

“तू खुश है तो मै जिन्दगीभर के लिये नौकरी करने के लिये तैयार हु क्रिष्ना।” बंसी ने उसे उठाकर क्रिष्ना के सिर पर हाथ रखकर बोला,” और जब तक बाबा नही कहते, मेरी तो यही नौकरी है, वो मेरे बाबा और तू मेरी माल्किन।”बंसी हसने लगा।

“भैया, भगवान आप को मलिक बनाये, मै कौन होती हु माल्किन बन ने वाली।” क्रिष्ना की आंखो मे फिर से आंसु छलक उठे।

“मत रो क्रिष्ना, मत रो, बहुत आसु बहा लिये तूने, अब लौट जा और संभाल अपनी ज़िंदगी को।” बंसी ने विश्वास के साथ क्रिष्ना का हौशला बनाया। 

क्रिष्ना फिर अपने रूम मे वापस आई। विक्रम अभी भी गेहरी नींद मे था और क्रिष्ना ने आवाज़ लगाइअ की,”उठिये जल्दी किजिये।”

दो तीन बार ऐसा करने से भी विक्रम की नींद नही खुली तो थककर क्रिष्ना बैठ गयी। पास मे ही रेडियो था तो उसने उठाकर विक्रम के कान के पास रखकर पहले वोल्युम 100 पर कर दिया और फिर चालु किया।

सुबह 7।30 बजे से लेकर 8।15 तक ओल इंडिया रेडियो पे पुराने हीट सोंग्स का कार्यक्रम आता था उस वक़्त। रेडियो चालु करते ही फिल्म ‘जंगली’ का गीत और मोहम्मद रफी साहब की आवाज मे शम्मी कपुर के लिये गाया हुवा टाइटल गीत ‘या.......हू......चाहे कोइ मुजे जंगले कहे’  बज उठा और उस की आवाज़ सुनकर विक्रम बेकाबु की तरह खड़ा हुवा।

क्रिष्ना तुरंत रेडियो का वोल्युम धीमा कर के ज़ोर से हसने लगी। रेडियो की आवाज़ नीचे तक आई थी और बंसी, राजेश्वरीदेवी और किशोरीलाल पहले तो चौक उठे और फिर एकदुसरे के सामने देखकर जोरो से हसने लगे और किशोरीलाल बोल उठा,”लगता है वीकी को ये सुधार देगी। अब आया है उट पहाड के नीचे। कोई आया है टक्कर देने वीकी को।” केहकर सब गार्डन की और चले।

यहा विक्रम की आँखे गोल गोल घुमी और उसने आइने मे अपना हुलिया देखा, बिल्कुल ऐसे ही डरा हुवा और घुटनो पर ही बैठा था। पास मे अप्सरा से भी सुंदर क्रिष्ना खड़ी खड़ी जोरो से हस रही थी। उसके मूह से गुब्बारे जैसी हवा निकल गयी और बोला,”कोई पति को ऐसे जगाता है पहली सुबह को? बीवी हो बच्चा?”

“ओये, मिस्टर इतनी देर तक आज से सोना मना है। जल्दी से फ्रेश हो जाइये, भाभी और भैया आप का वेइट कर रहे है।” कहकर क्रिष्ना अपने हाथ को कमर पे रखे खड़ी रही।


क्रिष्ना की तो आँखे ही बड़ी बड़ी थी और उपर से रात को देर से सोने के वजह से लाल होने से शराबी दिखती थी और उसमे गेहराइ तक पानी छलक रहा था। विक्रम थोड़ी देर देखता ही रह गया और फिर क्रिष्ना का हाथ पकड़कर अपनी और खीचा। 

अचानक हमले से क्रिष्ना गिर पड़ी और विक्रम के मूह से लॉक हो गयी लेकिन थोड़ी ही देर मे हाफने लगी और जोरो से विक्रम को उठाया और खड़ी होकर बोली,”सुबह सुबह् अपनी पत्नी को ये गिफ्ट दे रहे हो,फिर ज़ोर से सांस लेकर बोली,”जाइये ना भाइ को जुनाग़ढ जाने के लिये देर हो रही है”।

विक्रम तुरंत खडा होकर फेश होने चला गया और कुछ ही देर मे आइने के सामने खडा अपने बाल सवार रहा था। क्रिष्ना अभी गइ नही थी और गाने सुन रही थी।
 अचानक विक्रम की नज़र क्रिष्ना के चेहरे पर गयी। क्रिष्ना आँखे बंध कर के खडी थी। उसके होठ सख्ती से बंध थे और आँखो मे अश्रुओ की धारा बहे जा रही थी।

विक्रम ने क्रिष्ना का चेहरा अपनी ओर किया,”क्रिष्ना, क्यू रो रही हो, दर्द हो रहा है?

क्रिष्ना ने ना कहा और आँखे खोलकर विक्रम को देखने लगी और विक्रम का चेहरा अपने हाथो मे लेकर सहलाने लगी।

“तो रो क्यू रही हो?” विक्रम ने पुछा। 

क्रिष्ना ने विक्रम को अपनी बाहो मे ले लिया और मूह खोल के रो पड़ी। विक्रम गभरा गया और पुछ रहा था,”क्रिष्ना क्या हुवा बोल, मुज से कोई भूल हुई क्या? क्यू आख़िर क्या हुवा, क्यू रो रही है तू?”

क्रिष्ना ने रोते हुये कहा,”मूज़े रो लेने दो विक्रम, बड़ी मिन्नतो के बाद इतनी खुशिया मिली है मूज़े, आप खुश् तो है न मुज से। मेरी ग़लती हो जाये तो मूज़े माफ कर देना।”

विक्रम ने बड़ी मुश्किल से उसे शांत किया और फिर फ्रेश होकर विक्रम और क्रिष्ना दोनो एकसाथ नीचे आये और गार्डेन मे सब के साथ बैठ गये। विक्रम ने दोनो बच्चो के साथ खेलना शुरु किया और ये देखकर सब बहुत खुश हुये। बंसी ने फिर चाय सर्व कर दी। तब तक ऐसे ही बाते होती रही, फिर किशोरीलाल बोला,”वीकी आज हमे जाना होगा।”

“अरे दो दिन तो रुको यार, अभी अभी तो मेरी शादी हुई है और तू जाने की बात कर रहा है” विक्रम ने कहा।

किशोरीलाल,”देख हमे जुनागढ मे कुछ काम निभाने है और वैसे भी अब हमे तेरी कोई चिंता नही। तुजे हर सुबह सुरोसंगीत से अच्छी तरह जल्दी जगानेवाली आ चुकी है।”

विक्रम और क्रिष्ना ने एकदुसरे की और देखा और शर्म से क्रिष्ना ने नज़र जुका दी। उनदोनो को मालूम हो गया की रेडियो वाली आवाज़ नीचे तक पहुच चुकी है।

“हा यार मेरे भाग्य तो फुट गये, सुबह सुबह नींद खराब करनेवाली जो मिल गयी है। यार के.पी. कभी ऐसी बीवी देखी है जो उठाने के लिये रेडियो का उपयोग करे?” विक्रम ने क्रिष्ना को बिल्कुल खुल्ला कर दिया।

क्रिष्ना ने गुस्से से विक्रम की और देखा, लेकिन विक्रम फिर बोला,”मुज पे क्यू गुस्सा निकालती हो, तूने पराक्रम ही ऐसा किया है की सब को पता लग गया अब तू ही सम्भाल और जवाब दे।”

क्रिष्ना ने फिर अपना चेहरा नीचे डाल दिया। राजेश्वरीदेवी बोली,”वो तो करना ही पड़ेगा विक्रमभैया, इसे ही तो मीठा संसार कहते है।”

विक्रम ने दो हाथ जोडे,”भाभी, आप के गुस्से ने ही मूज़े वापस नयी ज़िंदगी गिफ्ट की है। मेरे लिये तो आप एक देवी के समान हो। मै आप को तो कभी नही भूल पाउंगा।”


किशोरीलाल ने बोला,”वीकी ये सिर्फ़ हमारा फर्ज़ है, लेकिन आज हमे विदा कर दे, मूज़े फिर जल्दी वापस आना होगा तेरे लिये।”

विक्रम,”ठीक है के.पी. लेकिन सिर्फ़ आज का दिन रुक जा, कल चले जाना, मै आज रामेश्वर को शांत कर लु। ता की तुजे इसकी भी चिंता ना रहे बस।”

“वो शांत हो जायेगा?”किशोरीलाल ने पुछा।

“अरे ये तो मेरी बायी मुठ्ठी का खेल है” विक्रम ने कहा और आगे बोला,”तू उसकी चिंता मत कर, ऐसे लोगो को कैसे समजाना है ये मूज़े अच्छी तरह आता है।”

“ठीक है हम आज के लिये रुक जाते है और कल फिर चले जायेंगे।”

फिर विक्रम 2 घंटे के लिये गुम हो गया और खाने के वक़्त सब ने मिलकर खाना खाया। विक्रम ने बताया की उसने रामेश्वर को समजा दिया है और शाम को पार्टी रखी है। 

शाम को कुछ खास दोस्तो के साथ पार्टी जैसा किया। बहुत कहने पर भी विक्रम ने शराब नही पी और पूरी पार्टी मे रामेश्वर भी मज़ा ले रहा था। लगता नही था की अब उसके दिल मे कोई बात हो। किशोरीलाल, राजेश्वरीदेवी, बंसी और क्रिष्ना ये सबकुछ देखकर बहुत खुश हुये और दूसरे दिन 8 दीनो के बाद किशोरीलाल और राजेश्वरीदेवी ने जुनगढ की ट्रैन पकड़ ली।

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जुनागढ  वापस आने के बाद 6 महीने तक किशोरीलाल काम मे डुब गया। ये 1982 के जुन महीने की बात है, जब किशोरीलाल अकेला जोधपुर आया। उसने पहले ही टेलिग्राम कर दिया था।  रेल्वे स्टेशन पर विक्रम खुद उसे लेने आया था। किशोरीलाल को हवेली ले जाया गया और फ्रेश होने के बाद सब चाय पी रहे थे तब विक्रम ने कहा,”केपी, अकेला क्यू चला आया, भाभी को साथ ले आता।”

“वीकी, हमारा क्या वादा था याद कर? पहले मै तुजे तेरे अग्रीमेन्ट से आज़ाद करुंगा और फिर जब तेरे घर बेटी आयेगी तो हम आयेंगे तुम से मिलने।” किशोरीलाल ने कहा।

“ठीक है फिर तो तुजे तुरंत दूसरी बार आना होगा” विक्रम ने हसते हुये कहा। और उसी वक़्त 6 महिने के पेट से क्रिष्ना ने आकर फिर से किशोरीलाल के पाव छुने चाहे लेकिन किशोरीलाल ने उसे मना किया और फिर सब ने चाय-नास्ते को न्याय दिया। 

विक्रम ने किशोरीलाल को कहा,”देख तेरी बहु को खीला पीला रहा हु, फिर मत कहना की हमने उसे भुखा रखा।

किशोरीलाल हसने लगा,”तु वैसा का वैसा ही रहा सुधरेगा नही।“ फिर कहा”अच्छा बोल कब निकलना है?”

"”आज की रात आराम कर ले, कल चलते है” विक्रम ने कहा।

“ठीक है, और बता रामेश्वर का क्या हुवा?” किशोरीलाल ने पुछ ही लिया।

“रामेश्वर, वो तो अपने गाव गया है और अब तो कोई परेशानी नही है, मैने उसे समजा दिया था की जब मैने उसकी बहन के लिये वादा किया था तब बात अलग थी, लेकिन मेरे बेटे के आने से बात कुछ अलग है।”

“अरे हा कहा है तेरा बेटा और क्या नाम रखा है तुम लोगो ने उसका?” किशोरीलाल ने पुछा।

“नाम अभी नही रखा है, जब ये दूसरा संतान आयेगा और वो बेटी ही हुई तो फिर एकसाथ मे दोनो का नामकरण करेंगे। क्युकी ये क्रिष्ना की मन्नत है की दूसरी बेटी ही होनी चाहिये। फिर हम एक ग्रुहशांति करायेंगे और फिर दोनो बच्चे का एकसाथ नामकरण होगा।” विक्रम बोला।

“अच्छा अच्छा चलो ठीक है, तेरा संसार तो बस गया। कब तक छुट्टी पे है तू?” किशोरीलाल ने पुछा।

“इस बार केवल 10 दिन की छुट्टी है, तू गया था उसके बाद के 10 दिन के बाद मैने फिर ड्युटी जोइन की तो अभी 5 दिन पहले ही आया हु। 6 महीने क्रिष्ना ने अकेला ही बिताये है यहा।” विक्रम ने बताया। 

“लेकिन देख विक्रम, इन 6 महीने मे तेरे घर को स्वर्ग बना दिया।,” किशोरीलाल ने चारो ओर देखते हुए कहा।”अरे बंसी कहा है?”

“बंसी तो आजकल बीझनेस कर रहा है” विक्रम ने हसते हुये कहा।

“क्या बात कर रहा है तू? बंसी और बीझनेस ?” किशोरीलाल बोला।

“हा यार, उसको बड़ी मुसिबत  के बाद यहा की नौकरी से आज़ाद किया है, साला जाने का नाम ही ले रहा था।” विक्रम ने बोलकर अपना हाथ अपने मूह पर लॉक कर दिया। क्युकी क्रिष्ना ने गुस्से से आँखे दिखाई।

“अरे क्या हुवा?, वो मेरा साला ही तो है ना, क्या बुरा कहा मैने ?” विक्रम ने बताया,”बंसी ने ट्रांसपोर्टेशन का बीझनेस चालू कर दिया है। 6 महीने मे 2 ट्रक्स तो उसने अपने घर के ले लिये है। मैने उसे शादी के लिये कहा, लेकिन वो माना ही नही और बोल रहा है की वो अपनी ज़िंदगी मे मस्त है।” 

“अरे हा याद आया, बीच मे उसकी एक चिठ्ठी आई थी की वो हमे सरप्राइझ देनेवाला है। यार हमे तो शादी का लगा था लेकिन लगता है की सरप्राइझ वो तो इस बीझनेस का ही था” किशोरीलाल ने कहा,”चलो अच्छा हुवा की बंसी की लाइफ भी सवर गयी यार, लेकिन वो है कहा? उसे मालूम नही है की मैं आनेवाला हु।”

“पता है उसे, लेकिन वो जयपुर गया है बीझनेस के काम से। उसे आते हुये कम से कम 10 दिन लग जायेंगे, कह रहा था की भैया को मेरी याद ज़रूर देना।” विक्रम ने बताया।

फिर पूरा दिन ऐसे ही बीत गया और रात को दोनो दोस्तो की बात खत्म हुइ और किशोरीलाल सोने चला गया तब विक्रम क्रिष्ना के पास आया तो रात के 12 बज चुके थे। आते ही उसने सोयी हुइ क्रिष्ना को जोर से काट लिया और नींद मे भी क्रिष्ना के मूह से चीख निकल गयी और आँखे खुली कर के बोली,”ये कोई तरीका है सोने का?”

“मेडम ये सोने का नही जगाने का तरीका है” विक्रम ने कहा।

“सो जाओ रात बहुत हो चुकी है।” क्रिष्ना ने अंगड़ाई लेते हुये कहा।

“मेडम मै छुट्टी लेकर यहा सोने नही, जागने आया हु। कई महीने हो गये है, कोई लडकी भी नही वहा” विक्रम ने मुह फुलाकर शिकायत पेश की।

“मुजे सोने दो और खुद भी सो जाओ, लडकी हो या पत्नी कोइ पुछनेवाली नही है यहा भी” कहकर क्रिष्ना उल्टा सो गयी।

“प्लीज, ऐसा मत करो क्रिष्ना, ये नाइंसाफी है, इतने महीनो के बाद मै क्या ये सुन ने के लिये आया हु ?” विक्रम रोती सुरत बनाते हुये बोला।

“तो मै क्या करू, किस ने कहा था मूज़े प्रेगनंन्ट बनाओ? अब आराम करो, मुजे भी करने दो और आप की आनेवाले बच्ची को भी।” कहकर क्रिष्ना मुस्कुराई और ठेंगा दिखाकर जोर से हसने लगी।

“ठीक है कुछ प्यार की बाते तो करो” विक्रम ने फिर क्रिष्ना को छेडा।

क्रिष्ना ने एक तमाचा विक्रम के गालो पर लगा दिया और। “आ.....ह..... धीरे यार ये क्या कर रही हो ?”सिसकते हुये विक्रम बैठ गया। और क्रिष्ना जोर से हसती रही।

“प्यार करना तो दुर उपर से मार रही हो”विक्रम् आगे कुछ बोले उस के पहले क्रिष्ना जट से खडी हुइ और सीधी बाथरुम की वोशबेसींन पर चली गइ जहा से वोमीटींग की आवाजे आ रही थी। विक्रम तुरंत उस के पास गया और उस की पीठ थपथपाने लगा। कुछ देर बाद क्रिष्ना नोर्मल हुइ और बोली“देखा, विक्रम, मूज़े प्यार का नाम सुनते ही कुछ हो रहा है, हटो वरना आज कत्ल कर दुंगी” कर के क्रिष्ना खड़ी हुई और दौड़ गयी और फिर से वोशबेसीन मे उल्टी कर दी।

कुछ देर तक विक्रम क्रिष्ना को सहलाता रहा और फिर कहा,”क्रिष्ना, ऐसी हालत मे तेरे पास कोइ नही है तु कैसे सम्भालती होगी अपने आप को? एक तरफ ये नन्हा मुन्ना और दुसरी और तेरी प्रेगनंन्सी। हाउ केन यु मेनेज ?

"इश्वर पे श्रद्धा रखो, ये आनेवाली कन्या उपरवाले की ही अमानत है, मुजे कुछ नही होगा देखना।“ विश्वास से क्रिष्ना ने विक्रम का चेहरा सहलाया

विक्रम ने आगे कुछ नही कहा लेकिन क्रिष्ना के पास आया और बाजु मे चुपचाप सो गया। थोड़ी देर बाद क्रिष्ना ने मूह उसकी तरफ किया तो बच्चे जैसा मूह बना रखा था विक्रम ने। पास मे ही दोनो का बच्चा सो रहा था उसकी तरफ देखकर विक्रम सोया हुवा था। क्रिष्ना उसे देखकर बेड मे ही सरकती उसके पास आई और विक्रम का चेहरा पकड़कर उसे चूमने लगी और बोली,”मेरा शैतान बच्चा है ये।” फिर दोनो सो गये गेहरी नींद मे।
********
 
दुसरे दिन सुबह विक्रम और किशोरीलाल तैयार हो के कन्याकुमारी के लिये निकल रहे थे तब किशोरीलाल ने अपने सामान से एक इंस्ट्रुमेंट निकाला और क्रिष्ना को दिया,”ये मैने आपदोनो के लिये खास बनाया है, जो विक्रम को सुबह जगाने मे काम आयेगा।”

क्रिष्ना ने शर्माकर नज़र फिर नीची कर ली और विक्रम ने पुछा,”ये क्या है?”

“रेडियो” किशोरीलाल ने जवाब दिया।

“लेकिन ये तो कुछ अजीब सा लग रहा है” विक्रम ने पुछा।

“इसीलिये तो खास तेरे लिये लाया हु, ये मेरा नया आविश्कार है। ये ऐसा रेडियो है जिसमे कोई भी स्टेशन डाइरेक्ट बजता है। मतलब की वातावरन की खराबी या दो स्टेशन मिल जाना ऐसी तकलीफ कभी भी इसमे नही होगी” किशोरीलाल ने कहा।

“लेकिन ऐसा कैसे सम्भव है ?” विक्रम ने पुछा।

“तू सिर्फ़ आम खा पेड मत गीन और चल देर हो रही है।” ऐसा कहकर खीचता हुवा किशोरीलाल विक्रम को ले गया। क्रिष्ना वो रेडियो लेकर हवेली मे चली गयी। 

हकीकत मे, जब हम रेडियो सुनते है तब जो स्टेशन से तरंगे निकलती है वो वेवलेंग्थ को पकड़ के हमारा रेडियो का रीसीवर उसे पकड के हमारे कानो तक पहुचाता है। जब भी कभी वातावरण खराब होता है या तो मुसाफरी के दौरान वेवलेंग्थ डिस्टर्ब होता है तो हमारा स्टेशन का पकड चला जाता है या तो दूसरा स्टेशन मीक्ष हो जाता है। फिर हमे एरीयल का इस्तेमाल कर के फिर से ट्युनर को घुमाकर वापस लाना होता है। लेकिन किशोरीलाल के इस आविश्कार मे ऐसी करामत थी की उसके एन्टेना मे सूपर रीसीवर ऐसा लगाया हुवा था जो मेक्षीमम वेवलेंग्थ पर जा के वेव्स केच करता था और वो भी किसी भी वातावरण मे। सामान्यत: वेव्स प्लस या माइनस मतलब उपर नीचे हो के रीसीव होता है। जिस से गाने सुनते सुनते कभी कभी आवाज चली जाती है और फिर से अपने आप आवाज चली आती है। लेकिन ये स्ट्रोंग रीसीवर सीधी लाइन पे काम करता है और डाइरेक्ट इंस्ट्रुमेंट मे पहुचता है। और इस वजह से इस रेडियो तक की वेवलेंग्थ मे किसी और का डीस्टरबंन्स या कोई भी वातावरण की खराबी या तो किसी और इंस्ट्रुमेंट या रेडियो का डीस्टरबंन्स नही होता था। हा इस आविश्कार से आजुबाजु के रेडियो की ताक़त बिल्कुल कम हो जाती थी। । तो दूसरे रेडियो मे स्टेशन गायब हो जाता था, या अगर अच्छी कम्पनी का रेडियो हो तो इस आविश्कार मे जो स्टेशन बजता होता था वो ही स्टेशन आजुबाजु के रेडियो मे ओटोमेटिक पकड़ लेता था और उस बाजुवाले रेडियो मे ओरीजीनल तो क्या दूसरे कोई भी स्टेशन पकड़ मे नही आते थे। इसे किशोरीलाल ने वेव्सडीस्टरबंन्स नाम दिया था और उसे सिर्फ़ कोई भी हालत मे गाने सुन के लिये और विक्रम को गिफ्ट करने के लिया बनाया गया था।

लेकिन किशोरीलाल को बिल्कुल अन्दाजा नही था की ये आविश्कार का उपयोग कितना ख़तरनाक और कौन जाने कहा और कब और क्यु और किस के लिये और किस के द्वारा होनेवाला था?????
********

किशोरीलाल और विक्रम दोनो कन्याकुमारी पहुचे और एक होटेल के रूम मे रुके, ये वही होटेल थी जहा विक्रम और नारायणप्रसाद, सुनंदा सब रुके थे। ये बात विक्रम ने ही किशोरीलाल को बताई। सब से पहले किशोरीलाल और विक्रम हॉस्पिटल गये और वहा के डोक्टर से मिले और सुनंदा के बारे मे बातचीत की, इस बात को ढाइ साल से भी ज़्यादा वक़्त गुजर चुका था। फिर भी डोक्टर ने पूरा सहयोग दिया और उसके साथ बातचीत से किशोरीलाल को भी सुकुन पहुचा और सुनंदा के बारे मे क्लीयरन्स मिल गया की उसकी मृत्यु स्वाभाविक रूप से चट्टान के उपर से गिरने से गेहरी चौट आने से हुई थी। उस रिपोर्ट मे खास था की सुनंदा गीरी उसके उपर भी एक ऐसा शक्तिशाली प्रहार हुवा था जिसने उसके प्राण ले लिये। सुनंदा को शरीर के नीचे पथ्थरो ने जान ले ली और उपर विक्रम गीरा था, तो उसका बॉडी पूरा दब गया था। साथ मे डोक्टर ने विक्रम का उस समय का एक्ष-रे रिपोर्ट भी बताया। उस समय कन्याकुमारी मे ये सुविधा नही थी तो कन्याकुमारी से 4 घंटे दूर त्रीवेन्द्रम (पुराना नाम तिरुवनंतपूरम) मे निकाला था उसकी कॉपी भी दिखाई। जिस मे विक्रम के घाव तो नही देख सकते थे, लेकिन बॉडी मे कही भी क्रेक नही था, वो जांच करने के लिये ही ये एक्ष-रे लिया गया था। ये सबकुछ किशोरीलाल के सामने रखा गया और दिखाकर समजाया गया। 

फिर वहा से दोनो पुलिस स्टेशन गये और वहा के इनचार्ज को मिले और पूरी बात बताई। ढाइ साल के पहले के हवलदार की ट्रांन्सफर हो चुकी थी तो उसे फ़ोन कर के दूसरे दिन बुलाया गया। क्यूकी उसकी ड्युटी त्रिवेन्द्रम मे ही थी तो वो आराम से दूसरे दिन आ सकता था। लेकिन वहा के इन-चार्ज ने बताया की वो उसी रात को आ जायेगा। 

फिर दोनो समुंदर किनारे गये और वहा बस्ती तो थी नही, सिर्फ़ मच्छीमारो के तीनचार झोपडे थे। उस मे से एक को विक्रम पहचान गया और फिर ढाइ साल पहले की बाते याद दिलाइ और उस मच्छीमार ने भी वही बात दोहराई जो विक्रम किशोरीलाल को बता चुका था। फिर दोनो ने फोटो स्टुडियो तलाश किया वो तस्वीरो के बारे मे। लेकिन आश्चर्य, ऐसा कोई स्टुडियो ही वहा मौजुद नही था। फिर वो होटेल मे वापस आये और होटेल मेनेजर वोही पुरानावाला था उसे पुछा, तो उसने बताया की त्रिवेन्द्रम से एक फोटोग्राफर बार बार यहा आता है रोजी रोटी के लिये। जब भी आता है उसी की होटेल मे रुकता है। दोनो ने उसका एड्रेस लिया और रात को खाना खा के फिर पुलिस स्टेशन पहुचे, वहा वो हवलदार आ चुका था। लेकिन मुश्किल ये थी की वो सिर्फ़ तेलुगु समजता था या तामिल या फिर इंग्लीश। साउथ के लोगो को हिन्दी कम समज मे आती है और आती है तो भी बोलने मे शर्म आती है (ये मेरा खुद का तजुर्बा है)।

लेकिन वहा का इंन-चार्ज तो सबकुछ जानता था। उसने उस हवलदार को विक्रम दिखाया और ढाइ साल पहले की बाते याद दिलाइ। वो इन-चार्ज और हवलदार जब बाते कर रहे थे तो तेलुगु मे, इसिलिये इनदोनो के समज मे कुछ नही आ रहा था। बस वो दोनो बीच बीच मे “छेरी, छेरी” बोले जा रहे थे

थोड़ी ध्यान से सुन ने के बाद किशोरीलाल ने विक्रम को बताया की जैसे हिन्दी मे बात करते वक़्त हम प्रयोग करते है “अच्छा, अच्छा तो ये बात है, अच्छा” वैसे ही ये लोग तेलुगु मे बातचीत मे “छेरी” का प्रयोग कर रहे है। मतलब की किसी बात को अच्छा बोलना मतलब छेरी। फिर इन-चार्ज ने इनदोनो को पुछा की बोलो क्या बात पुछनी है?

किशोरीलाल और विक्रम ने उसे समजाया की ऐसा आक्सिडेंट हुवा था और विक्रम ने तीनो अग्निसंस्कार कर दिये थे लेकिन पुलीस क्लीयरन्स चाहिये। पहले तो इन-चार्ज ने साफ इनकार कर दिया, लेकिन जब विक्रम ने नोटो की गड्डी दिखाई तो फिर उस हवलदार को सबकुछ याद आ गया और पूरा हादसा बोला और फिर कहा भी की उसने छानबीन भी की थी और लाशे जब समुन्दर किनारे पडी थी तब उसको वहा बुलाया गया था,उसने सबकुछ चेक कर के पंचनामा भी किया था और उस तारीख की फाइल खोलकर पंचनामा दिखाया और किशोरीलाल को तसल्ली भी हो गयी और पुलिस से डेथ क्लीयरन्स भी मिल गया। 

दोनो वापस होटेल मे आ के दूसरे दिन त्रिवेन्द्रम मे पहुचे और वहा से म्युनीसीपालिटी मे जाकर पुलिस डेथ क्लीयरन्स के आधार पर डेथ सर्टिफिकेट निकल गया। इन सब कामो मे विक्रम की मिलिटरी पहचान बहुत युज करने पड़े। सरकारी मामलो मे वरना इतनी जल्दी काम कभी नही निकलता है। जहा ज़रूरत हुई वहा पहचान का इस्तेमाल किया, उस से भी काम मुश्किल लगा वहा हरी हरी नोटो ने काम कर दिया। लेकिन काम समाप्त हो गया और फिर दोनो उस फोटोग्राफर को ढुंढने निकल पडे। लेकिन जब उस के स्टुडियो तक पहुचे, वो फोटोग्राफर कन्याकुमारी के लिये निकल गया था। किशोरीलाल ने फिर विक्रम को बोल दिया की अब ज़्यादा झंझट करने की ज़रूरत नही है। उसके लिये डेथ सर्टिफिकेट ही काफी है और वे लोग जोधपुर वापस आ गये। 

ये कुदरत ने एक और भुल करवाइ थी किशोरीलाल के द्वारा। क्युकी वो फोटोग्राफर कोइ और नही बल्की जिस रात विक्रम और सुनंदा टेरेस पर जा रहे थे और जो कपल टेरेस से नीचे उतर रहा था वो यही फोटोग्राफर था। जब विक्रम-सुनंदा दोनो टेरेस पर इत्मिनान से बातचीत कर रहे थे तब वो फोटोग्राफर धीरे से फिर से टेरेस पर आ चुका था और एक कोने से सबकुछ सुन रहा था। इतना ही नही विक्रम-सुनंदा की अंगत तस्वीरे भी उस ने खीच ली थी।

एक रात आराम कर के वकील मिस्टर सेन से दोनो जाकर मिले और सब डोक्युमेंट्स दिखाये तो अपने आप ही एग्रीमेन्ट किशोरीलाल के नाम हो गया और फिर किशोरीलाल बोला,”सेन बाबू अब मै इस अग्रीमेंट की सारी शर्तो से विक्रम को आज़ाद करना चाहता हु, बताइये कैसे कर सकते है?”

मि. सेन,”मुश्किल है किशोरीबाबू, क्यूकी इस एग्रीमेन्ट मे आप का, मेरा, मि. बंसी का और एक अग्यात व्यक्ति का इन्वोल्वमेन्ट है। सब मिलकर सोचे तो ही काम हो सकता है। हा ये ज़रूर है की मैइन व्यक्ति आप हो तो सारी डीसीसन पावर आप के ही हाथ मे है। चलो मै तैयार हु, मान लेता हु की मि. बंसी भी है तैयार है, फिर भी ये अग्यात आदमी कौन है ये कैसे पता चलेगा?”

किशोरीलाल बोला,”अगर वो अग्यात व्यक्ति भी तैयार हो जाये तो?”

“इसका मतलब उस अग्यात व्यक्ति को आपलोग पहचानते है” मि. सेन ने पुछा ।

“जी हा वकिलबाबू” विक्रम भी बीच मे बोला।

और सही मे तीसरे दिन उस अग्यात व्यक्ति मतलब रामेश्वर के साथ बंसी को भी बुलाया गया। बंसी तो था नही लेकिन रामेश्वर और मि. सेन और किशोरीलाल ने कोर्ट मे जाकर विक्रम को आज़ाद करने की नयी एफिडेविट मे साइन कर दिया अब सिर्फ़ बंसी के आने के बाद उसकी साइन लेने के बाद पब्लिक नोटरी की साइन से कोर्ट मे नया एफिडेविट पर एकबार सुनवाइ होगी और विक्रम आज़ाद।

लेकिन बंसी आता और कोर्ट मे ये दाखिल होता और फिर कोर्ट तारीख देती, इन सब फोर्मालीटीज मे थोड़ा वक़्त लगनेवाला था। इसिलिये सब ने ये फ़ैसला किया की जब विक्रम के यहा संतान का जन्म होगा तब सब इकठ्ठा होकर इस कार्यवाही को आगे बढायेंगे, क्यूकी फिल्हाल किसी के पास इतना समय नही था। न तो किशोरीलाल के पास और न ही तो विक्रम के पास, उसकी विक्रम की छुट्टिया ख़तम हो रही थी। 

बस इतना काम निपटा कर सब हवेली वापस आ गये और दूसरे दिन किशोरीलाल ने फिर जुनागढ की ट्रैन पकड़ ली और घर जा के राजेश्वरीदेवी को सबकुछ बताया। राजेश्वरीदेवी क्रिष्ना की प्रेगनन्सी की बात सुनकर बहुत खुश हो गयी और दोनो ने फ़ैसला किया की क्रिष्ना के डीलेवरी के आख़िर वक़्त मे वे दोनो ज़रूर जोधपुर पहुच जायेंगे। शायद कुदरत अब मेहरबान थी सब पर। अब नही शायद अब तक........... ***************************

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8 Comments

Seema Priyadarshini sahay

07-Feb-2022 04:45 PM

बहुत ही शानदार भाग

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PHOENIX

07-Feb-2022 05:55 PM

Thank you so much.

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Kya kishorilal ke sath bhi koi accident hona h dekhte h agle bhag me

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PHOENIX

31-Jan-2022 02:41 PM

देखे आगे क्या होता।

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Inayat

15-Jan-2022 04:32 PM

काफी अच्छी कहानी है। कहानी में हंसी खुशी का माहौल बन गया है। कृष्णा और राजेश्वरी की नोक झोंक देखते ही बन रही है। इतनी शांति अच्छी नहीं लगती।

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PHOENIX

15-Jan-2022 04:40 PM

😃😀 अरे बाप रे! शांति अच्छी नही लगी? कुछ अपडेट्स फेमिली पर लिखे थे। कोई बात नही ये अपडेट शायद फेमिली ड्रामा का आखरी अपडेट था। अगले से भागदौड़ शुरू करते है। धन्यवाद honest comment के लिये।

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